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> अल्ताफ़ हुसैन हाली
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अल्ताफ़ हुसैन हाली
इश्क़ सुनते थे जिसे हम वो यही है शायद
धूम है अपनी पारसाई की
फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सान बनना
जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा
है जुस्तजू कि ख़ूब से हो ख़ूबतर कहाँ
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