INDIAN_ROSE22
04-03-2015, 06:01 PM
निर्वाण {महादेवी वर्मा}
घायल मन लेकर सो जाती
मेघों में तारों की प्यास,
यह जीवन का ज्वार शून्य का
करता है बढकर उपहास।
चल चपला के दीप जलाकर
किसे ढूँढता अन्धाकार?
अपने आँसू आज पिलादो
कहता किनसे पारावार?
झुक झुक झूम झूम कर लहरें
भरतीं बूदों के मोती;
यह मेरे सपनों की छाया
झोकों में फिरती रोती;
आज किसी के मसले तारों
की वह दूरागत झंकार,
मुझे बुलाती है सहमी सी
झंझा के परदों के पार।
इस असीम तम में मिलकर
मुझको पलभर सो जाने दो,
बुझ जाने दो देव! आज
मेरा दीपक बुझ जाने दो!
घायल मन लेकर सो जाती
मेघों में तारों की प्यास,
यह जीवन का ज्वार शून्य का
करता है बढकर उपहास।
चल चपला के दीप जलाकर
किसे ढूँढता अन्धाकार?
अपने आँसू आज पिलादो
कहता किनसे पारावार?
झुक झुक झूम झूम कर लहरें
भरतीं बूदों के मोती;
यह मेरे सपनों की छाया
झोकों में फिरती रोती;
आज किसी के मसले तारों
की वह दूरागत झंकार,
मुझे बुलाती है सहमी सी
झंझा के परदों के पार।
इस असीम तम में मिलकर
मुझको पलभर सो जाने दो,
बुझ जाने दो देव! आज
मेरा दीपक बुझ जाने दो!