INDIAN_ROSE22
21-03-2015, 01:50 PM
है कुपथ पर पाँव मेरे
आज दुनिया की नज़र में !
पार तम के दीख पड़ता
एक दीपक झिलमिलाता,
जा रहा उस ओर हूँ मैं
मत्त-मधुमय गीत गता,
इस कुपथ पर या सुपथ पर पर
मैं अकेला ही नहीं हूँ,
जानता हूँ क्यों जगत् फिर
उँगलियाँ मुझ पर उठाता--
मौन रहकर इस शहर के
साथ संगी बह रहे हैं,
एक मेरी ही उमंगें
हो रही है व्यक्त स्वर में.
है कुपथ पर पाँव मेरे
आज दुनिया की नज़र में !
आज दुनिया की नज़र में !
पार तम के दीख पड़ता
एक दीपक झिलमिलाता,
जा रहा उस ओर हूँ मैं
मत्त-मधुमय गीत गता,
इस कुपथ पर या सुपथ पर पर
मैं अकेला ही नहीं हूँ,
जानता हूँ क्यों जगत् फिर
उँगलियाँ मुझ पर उठाता--
मौन रहकर इस शहर के
साथ संगी बह रहे हैं,
एक मेरी ही उमंगें
हो रही है व्यक्त स्वर में.
है कुपथ पर पाँव मेरे
आज दुनिया की नज़र में !