हमारा तो आज कुछ नहीं है। हाँ, कबीर का एक दोहा ज़रूर आज चाय की दूकान पर सुना-
कबिरा ज्ञान ऐसा बाँटिए, जाको फेर न होय।
फेर भया तो जग हँसै, आपहुँ नीचा होय।।
कबीर जी कहते हैं कि ज्ञान ऐसा बाँटना चाहिए जिसमें कोई फेर-बदल न कर सके अर्थात् कोई उसकी काट न निकाल सके, क्योंकि दिया गया ज्ञान झूठा सिद्ध होने पर जगहँसाई होती है और ज्ञान देने वाले का सिर नीचा होता है।
Jay shri ram koi hai kya
आप तय कर ले की,आप को क्या करना है...?वरना,समय तय कर लेगा की,आपका क्या करना है...!
मिल गई, मिल गई.. मोती मिल गई! शुक्र है जल्दी मिल गई। नहीं तो रात भर ढूँढ़ना पड़ता!