अचानक गर्जन करते साधू का मुख अमानवीय रूप से और अधिक खुलता चला गया ! स्वान दन्त तीक्ष्ण एवं बड़े होकर मुँह से बाहर निकल आये ! जिव्हा लम्बी हो मुँह से बाहर लटक गयी ! सहसा साधु के मस्तक से नीलाभ लिए प्रकाश रश्मिया फुट पडी ! जैसे उनके मस्तक पर कोई दिव्य ज्योति जल उठी हो !
और अगले ही पल गार में नीले प्रकाश का एक विस्फोट सा हुवा ,! मेरी इन्द्रिया एक पल को सुन्न सी पड़ गयी , और तभी लगा जैसे कोई बहुत दूर शंख बजा रहा हो ,,,, ! ,,,,,,,गार में एक छण को मानो समय थम गया ,,,, पर दूसरे ही छण मेरे सामने प्रकृति का अनुपम शक्ति पुंज खड़ा था !
इक्क्षाधारी अपने पुरे नाग वैभव के साथ अपने आदि सर्प रूप में केंद्रीय गार के फर्श से लगभग १५ फ़ीट ऊपर फन काढ़े धूम्र मानव को अपनी काल सदृश्य आँखों से घूर रहे थे !
अनुपम सौंदर्य था महानाग का ! चमकीला सुनहला रंग , छत्र की तरह तने फन के पिछले हिस्से में उनके महाआराध्य के खड़ाऊ के निशान , फन के बीचोबीच नेत्रों के मद्य नीले आलोक में जगमगाती नाग मडी !
तभी महानाग ने एक जोर की फुफकार भरी ! जहरीली फुफकार ने तुरंत ही अपना असर दिखाया ! जहा फुफकार पडी थी , धूम्र मानव का शरीर वहा से पिघल कर गहरे कोलतार की तरह फर्श पर टपक पड़ा ! धूम्र मानव से फिर से एक डरावनी डकार ली ,,,, उसकी पुछ में फिर से विद्युत् सी चमकी , धुवे से फिर से अपने को समायोजित किया ,,,,,, और फिर आ डटा वो महानाग के सदृश्य !
तभी इक्क्षाधारी ने अपना आकार अत्यंत विशाल कर लिया , ! कुछ पलों में ही जैसे आधा केंद्रीय गार महानाग के अतिविशाल शरीर से पट गया ! महानाग ने कुछ स्वर्ण स्तम्भों के इर्द गिर्द अपने पिछले शरीर को लपेटा एवं झपट कर धुवे से बने उस दानवाकार ऊर्जा पिंड को अपनी कुंडली में भींच लिया ! परन्तु धूम्र मानव सतर्क था ,, तुरंत धुवे को पकड़ पाना आसान नहीं था ! धूम्रमानव तत्काल विरल हो दो भागो में विभक्त हो महानाग की कुंडली से निकल गया !
,,,,,,,,,,,,तभी मेरे पार्श्व मस्तिष्क में कोई फुसफुसाया ,,,,!
,,,,,,,,,,,,टेलीपैथी के स्पस्ट शब्द चेतना के अंधरुनी भाग में गूंजे !
,,,,,,,,,,,, " कन्या को बचाओ साधक " ..... ,,,,,,,,,,
स्पष्तः ये इक्क्षाधारी के ही शब्द थे ! ,,,
मेने चौक कर उस स्तम्भ की तरफ देखा जहा मैंने सलोनी को अर्धमूर्छित अवस्था में छोड़ा था ,,,,
और अगले ही पल मेरे रोहटे खड़े हो गए ,,,,,,,
...,,,, सलोनी नहीं थी वहाँ ,,,,,,
मैंने सलोनी की खोज में पुरे गार में नजर दौड़ाई ,,,,,
पर सलोनी कही नहीं थी !