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Thread: तंत्र की अलौकिक दुनिया , मेरे यात्रा वृतांत

  1. #811
    कर्मठ सदस्य prem_sagar's Avatar
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    अचानक गर्जन करते साधू का मुख अमानवीय रूप से और अधिक खुलता चला गया ! स्वान दन्त तीक्ष्ण एवं बड़े होकर मुँह से बाहर निकल आये ! जिव्हा लम्बी हो मुँह से बाहर लटक गयी ! सहसा साधु के मस्तक से नीलाभ लिए प्रकाश रश्मिया फुट पडी ! जैसे उनके मस्तक पर कोई दिव्य ज्योति जल उठी हो !


    और अगले ही पल गार में नीले प्रकाश का एक विस्फोट सा हुवा ,! मेरी इन्द्रिया एक पल को सुन्न सी पड़ गयी , और तभी लगा जैसे कोई बहुत दूर शंख बजा रहा हो ,,,, ! ,,,,,,,गार में एक छण को मानो समय थम गया ,,,, पर दूसरे ही छण मेरे सामने प्रकृति का अनुपम शक्ति पुंज खड़ा था !

    इक्क्षाधारी अपने पुरे नाग वैभव के साथ अपने आदि सर्प रूप में केंद्रीय गार के फर्श से लगभग १५ फ़ीट ऊपर फन काढ़े धूम्र मानव को अपनी काल सदृश्य आँखों से घूर रहे थे !

    अनुपम सौंदर्य था महानाग का ! चमकीला सुनहला रंग , छत्र की तरह तने फन के पिछले हिस्से में उनके महाआराध्य के खड़ाऊ के निशान , फन के बीचोबीच नेत्रों के मद्य नीले आलोक में जगमगाती नाग मडी !

    तभी महानाग ने एक जोर की फुफकार भरी ! जहरीली फुफकार ने तुरंत ही अपना असर दिखाया ! जहा फुफकार पडी थी , धूम्र मानव का शरीर वहा से पिघल कर गहरे कोलतार की तरह फर्श पर टपक पड़ा ! धूम्र मानव से फिर से एक डरावनी डकार ली ,,,, उसकी पुछ में फिर से विद्युत् सी चमकी , धुवे से फिर से अपने को समायोजित किया ,,,,,, और फिर आ डटा वो महानाग के सदृश्य !

    तभी इक्क्षाधारी ने अपना आकार अत्यंत विशाल कर लिया , ! कुछ पलों में ही जैसे आधा केंद्रीय गार महानाग के अतिविशाल शरीर से पट गया ! महानाग ने कुछ स्वर्ण स्तम्भों के इर्द गिर्द अपने पिछले शरीर को लपेटा एवं झपट कर धुवे से बने उस दानवाकार ऊर्जा पिंड को अपनी कुंडली में भींच लिया ! परन्तु धूम्र मानव सतर्क था ,, तुरंत धुवे को पकड़ पाना आसान नहीं था ! धूम्रमानव तत्काल विरल हो दो भागो में विभक्त हो महानाग की कुंडली से निकल गया !

    ,,,,,,,,,,,,तभी मेरे पार्श्व मस्तिष्क में कोई फुसफुसाया ,,,,!
    ,,,,,,,,,,,,टेलीपैथी के स्पस्ट शब्द चेतना के अंधरुनी भाग में गूंजे !
    ,,,,,,,,,,,, " कन्या को बचाओ साधक " ..... ,,,,,,,,,,
    स्पष्तः ये इक्क्षाधारी के ही शब्द थे ! ,,,
    मेने चौक कर उस स्तम्भ की तरफ देखा जहा मैंने सलोनी को अर्धमूर्छित अवस्था में छोड़ा था ,,,,
    और अगले ही पल मेरे रोहटे खड़े हो गए ,,,,,,,
    ...,,,, सलोनी नहीं थी वहाँ ,,,,,,
    मैंने सलोनी की खोज में पुरे गार में नजर दौड़ाई ,,,,,
    पर सलोनी कही नहीं थी !
    ,,,,प्यार बाँटते चलो ,,,,

  2. #812
    कर्मठ सदस्य prem_sagar's Avatar
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    Quote Originally Posted by rana kali View Post
    मंच एवं सूत्र पर स्वागत है मित्र !
    सूत्र भ्रमण एवं पसंद करने के लिए धन्यवाद !
    अपडेट के साथ उपस्थित हु !
    ,,,,प्यार बाँटते चलो ,,,,

  3. #813
    नवागत
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    लगता है कथा सुखांत की ओर बढ़कर शीघ्र ही परिणति को प्राप्त होगी। प्रेम सागर जी इन कथाओं को पुस्तक का रूप दीजिए आपको प्रसिद्ध कथाकारों में शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता

  4. #814
    नवागत pardesi's Avatar
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    प्रेम सागर जी इन कथाओं को पुस्तक का रूप दीजिए आपको प्रसिद्ध कथाकारों में शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता


  5. #815
    नवागत
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    Nice update sir...tnx

  6. #816
    नवागत
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    Super'b update

  7. #817
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    Waiting for next update

  8. #818
    कर्मठ सदस्य prem_sagar's Avatar
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    तभी मुझे केंद्रीय गार के मुख्य गलियारे में किसी के भागने का एहसास हुवा !
    कौन हो सकता है ? ...
    क्या झींगुर ,,,,,?
    लेकिन फिर सलोनी कहा गयी ?
    हे ईश्वर। .. क्या वो नराधम मेरी नन्ही सी अर्धमूर्छित गुड़िया को ले भागा ?
    लेकिन क्यों ? ,,,, क्या केंद्रीय गार के स्वर्ण के मोह में ,,,,,, एकबार फिर प्रयास करने हेतु? ,,,,, !
    परन्तु क्या उसे निरसा का भयावह अंत इतने शीघृ विस्म्रित हो गया ,,,, ?
    ओह ,,,,,, कही उसका उद्देश्य अपने गुरु के वध का प्रतिशोध तो नहीं ? ,,,,,,,,,मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी !
    और अगले ही छण , में अपनी सारी शक्ति समेत कर गलियारे में भागते साये के पीछे भाग छूटा !

    महाकाय झींगुर सलोनी को अपनी काख में दबाये चौकड़ी भरता हुवा तीनो वलयाकार गलियारों को पार करता हुवा पत्थर के घनरूप कोटरो तक जा पहुंचा ! वहा चट्टानी दीवार में केवल दो ही घनरूप दृटिगोचर हो रहे थे ,!
    तभी झींगुर ने एक बार मुड़ कर पीछे देखा , शायद उसे भी अपने पीछे मेरे दौड़ते कदमो की आहट सुनाई दे गयी थी ! एक छण को हमारे नेत्र मिले ,,,,, मेरे इस प्रकार पीछा करने से वो डर गया था ,,,,,,,, और अगले ही पल वो बदहवास हो एक कोटर में प्रविष्ट हो गया ! ये वही घनरूप था जिससे में और निरसा नीचे आये थे !

    अचानक घनरूप में वही फास्फोरस की प्रदीप्ति छा गयी , झींगुर के सधे हाथ उभरे पत्थरो पर चले और मेरे वहा पहुंचने से पहले ही घनरूप १८० अंश घूमकर बंद हो गया !

    मे भी बिना समय गवाए , तत्काल दूसरे कोटर में प्रविष्ट हुवा , ,,,,,,,एक पल को नेत्र बंद कर रेखा गडित की विधियों से अपने मस्तिष्क में सुरक्षित कूट क्रम को घनरूप की दीवार पर उभरे पत्थरो पर दबाया !

    ,,,,,,,और एक झटके के साथ मेरा भी घनरूप बंद हो उर्ध्वगामी हो चला !,,,,,,
    Last edited by prem_sagar; 31-03-2018 at 05:33 PM.
    ,,,,प्यार बाँटते चलो ,,,,

  9. #819
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    बहुत ही बढ़िया परन्तु छोटा अपडेट है, अब देखते है सलोनी को आप किस तरह बचाते है , वहाँ और क्या-क्या घटित होता है, गार का द्वार कैसे बंद होता है?
    लोग मुझ पर हँसते है क्यों की मैं सबसे अलग हूँ, मैं उन पर हँसता हूँ क्यों की वो सब एक जैसे है |

  10. #820
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    कुछ ड़ेढ़ दो मिनट तक पत्थर की वो आदिम लिफ्ट ऊपर की तरफ चल कर रुक गयी ! अगले ही पल मैंने अपने आपको तप्तकुण्ड एवं अंधकूपो वाली विशाल खोह में पाया ! मैंने एक दो बार पलके झपकाकर अपने नेत्रों को उपस्थित प्रकाश के अनुरूप किया , तभी मेरी दृस्टि हाथ में मशाल लिए तप्त कुंड के पास खड़े झींगुर पर पडी जो बड़े आश्चर्य से मुझे ही देख रहा था ! उसका विस्मय से खुला मुँह मानो पूछ रहा हो की मैंने इतने शीघृ उन घनरूपो का तिलस्म कैसे तोड़ दिया !


    अचानक झींगुर मुड़ा और दौड़ पड़ा तप्त कुंड की और ! में भी बिना कोई और समय गवाए दौड़ पडा उसके पीछे । !
    तभी मेरे ह्रदय में एक नए डर से सर उठया ! कही घबराहट में ये कपटी सलोनी को तप्त कुंड में फेक न दे ,,, ! और मेरे कदम जहा थे वही थम गए ! मुझे अब सावधानी से काम लेना था ! मेने अपनी चाल धीमी कर ली जिससे झींगुर को पकड़ में आने का भय कम हो सके !

    उधर झींगुर तप्त कुंड के खूनी छलावों पर पहला कदम बढ़ा चुका था ! सलोनी को उसने अपने कंधे पर लाद रखा था एवं निरसा की ही विधि से कुछ मंत्रादि श्लोको में सुझाये गए पत्थरो पर एक एक कदम चलता खोह के हरियाली वाले हिस्से की तरफ बढ़ चला ! शायद निरसा से झींगुर को तिलस्म के प्रत्येक द्वार के बारे में अच्छी तरह प्रशिक्षित कर रखा था !

    कुछ ही देर में झींगुर तप्त कुंड पार कर गंधक के पीले धुवे के बीच विलीन हो गया !

    अब मेरी बारी थी ,,, अपनी यादास्त के आधार पर मेने भी सहमते हुवे उन पत्थरों पर अपने कदम बढ़ाये ! ,,, भय से मेरे माथे एवं गर्दन पर पसीना चुहक आया ,,,,! ज़रा सी चूक अतीविभत्स्य मृत्यु का आलिंगन करने पर विवश कर सकती थी ! बस किसी तरह बाबा विश्वनाथ का सुमिरन करते एक एक पथ्तरों को पार करता में भी जा उतरा तप्त कुंड के पार !


    आगे कही दूर झींगुर के मशाल की रोशनी टिमटिमा रही थी ! शायद वो खोह के प्रवेश द्वार तक पहुंच चुका था !
    तभी झींगुर के मशाल का प्रकाश खोह से गायब हो गया ! संभवतः उसने तिलस्म के दूसरे द्वार में प्रवेश कर लिया था ! इधर खोह के पथरीले फर्श पर मेने भी दौड़ लगा दी ! यही समय था जब में बिना झींगुर की दृस्टि में आये उसके और अपने बीच की दूरी कम कर सकता था !
    Last edited by prem_sagar; 31-03-2018 at 05:46 PM.
    ,,,,प्यार बाँटते चलो ,,,,

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