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हिन्दी के विकास में 'लुंगी' का महत्व
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हिंदी के विकास में लुंगी का अभूतपूर्व योगदान है। सुनने में यह बात अटपटा ज़रूर लगती है कि भला हिंदी के विकास में लुंगी का क्या योगदान हो सकता है, किन्तु यह शाश्वत सत्य है कि लुंगी के बिना हिंदी का विकास असम्भव है। इस व्यंग्य लेख को पढ़ने के बाद आप सभी समवेत स्वर में कहेंगे कि वाकई हिंदी के विकास में लुंगी का अभूतपूर्व योगदान था, है और रहेगा।
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हुआ यह कि पिछले तीन दशकों में देश में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए अँग्रेज़ी मीडियम स्कूलों की बदौलत अँग्रेज़ी का जमकर विकास हुआ और हिन्दी पीछे रह गई। अँग्रेज़ी का जमकर विकास होने के कारण देश दो भागों में बँट गया। एक ओर अँग्रेज़ी वाले थे जो कार से चलते थे और देश को गर्व से इंडिया कहते थे। दूसरी ओर हिन्दी वाले थे जो साइकिल से चलते थे और देश को गर्व से भारत कहते थे। अँग्रेज़ी वालों का देश इंडिया था और हिन्दी वालों का देश भारत था। भारत की हिन्दी पीछे जा रही थी और इंडिया की अँग्रेज़ी आगे जा रही थी। हिन्दी के पाठक लगातार घटते जा रहे थे और अँग्रेज़ी के पाठक लगातार बढ़ते जा रहे थे। अँग्रेज़ी वाले स्मार्ट कार्ड और क्रेडिट कार्ड के साथ कार में घूम रहे थे। हिन्दी वाले राशन कार्ड और आधार कार्ड के साथ साइकिल पर टहल रहे थे।
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एक बार अँग्रेज़ी वाले जब पब में बैठे बियर के साथ चियर्स करके आपस में गपशप लड़ा रहे थे तो हिन्दी समाचार-पत्र में छपा वह लेख अक्षर जोड़-जोड़कर पढ़ने में कामयाब हो गए जिसमें हिन्दी दिवस के अवसर पर चर्चित हिन्दी स्तम्भकार गौतम चटर्जी ने हिन्दी रंगमंच की खिल्ली उड़ाते हुए अपने लेख में लिखा था-
'नाटक लिखे बिना रंग प्रस्तुति हो सकती है, ऐसा हिन्दी नाटकों की दुनिया में ही सम्भव है। इससे अधिक अन्धा युग और क्या हो सकता है कि पिछ्ले तीन दशकों से हिन्दी में नाटक लिखे नहीं जा रहे?'
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लेख पढ़कर अँग्रेज़ी वाले शर्म से पानी-पानी हो गए। धिक्कार है ऐसे जीवन पर! अपने ही देश में हिन्दी पीछे जा रही है। इसे और पीछे जाने से रोकना होगा। हिन्दी के विकास के लिए कुछ करना चाहिए। पब में बियर के साथ चियर्स करते हुए आपस में गपशप लड़ाकर समय व्यर्थ करने से अच्छा है- देशहित में हिन्दी के विकास के लिए कुछ सार्थक काम किया जाए। अपने देश की अपनी राजभाषा का विकास करना हर भारतीय का कर्तव्य है!
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फिर क्या था? अँग्रेज़ी वालों ने फटाफट मोबाइल, फ़ोन, फ़ैक्स, मैसेज, ईमेल, ह्वाट्सऐप, फ़ेसबुक और ट्विटर के जरिए एक-दूसरे से सम्पर्क करना शुरू किया और थोड़ी ही देर में हिन्दी के विकास के लिए अँग्रेज़ी वालों की एक लम्बी-चौड़ी फौज़ खड़ी हो गई। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि हिन्दी के विकास के लिए शहर में एक क्लब खोला जाए जिसका नाम होगा- 'हिंदी विकास क्लब'। अँग्रेज़ी वालों के पास पैसे की कोई कमी तो थी नहीं। आनन-फानन में शहर की एक पुरानी बिल्डिंग को जहाँ पर कभी कैबरे डाँस हुआ था, औने-पौने दाम पर खरीदकर मरम्मत कराकर नया बना दिया गया और बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा दिया गया जिसमें लिखा था- 'हिंदी विकार क्लब'। अब बेचारा बोर्ड बनाने वाला भी क्या करे? हिंदी में जो लिखकर दिया जाएगा उसी नाम का तो बोर्ड बनेगा! अँग्रेज़ी वालों के कम हिन्दी-ज्ञान की वजह से 'विकास' की जगह 'विकार' हो गया और बेचारे अँग्रेज़ी वालों को पता तक न चला।
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'हिन्दी विकास क्लब' के बोर्ड में हुई भारी गड़बड़ी से अनभिज्ञ अँग्रेज़ी वाले 'हिन्दी विकास क्लब' का प्रचार और प्रसार करने में तन और धन से लग गए। मन से लगने में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि मन में तो अँग्रेज़ी थी। ज़रा भी मुँह खोलते तो अपनी टूटी-फूटी हिन्दी की वजह से रंगे हाथ पकड़ लिए जाते। पकड़े जाने के डर से अँग्रेज़ी वाले हिन्दी वालों के सामने आपस में बहुत ही कम बातचीत करते। कुछ चतुर किस्म के अँग्रेज़ी वालों ने अपने आप को अहिन्दीभाषी प्रदेशों का रहने वाला घोषित कर दिया जिससे हिन्दी बोलने में हो रही त्रुटियों (Mistakes) को समायोजित (Adjust) किया जा सके। कुछ महाचतुर अँग्रेज़ी वालों ने अपने आपको विदेशी भारतीय घोषित कर दिया।
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'हिन्दी विकार क्लब' के नाम से खुले 'हिन्दी विकास क्लब' की चमचमाती शानदार बिल्डिंग की जगमगाहट और कई रंगों में जलते-बुझते 'हिन्दी विकार क्लब' के भव्य बोर्ड को देखकर अँग्रेज़ी वाले यह सोचकर बड़े प्रसन्न थे कि अब हिन्दी का जबरदस्त विकास होगा, किन्तु हुआ इसका उल्टा। 'हिन्दी विकार क्लब' की भव्यता और पार्किंग में खड़ी बड़ी-बड़ी कारों को देखकर साइकिल से चलने वाले हिन्दी वाले घबड़ा गए जिसके कारण उन्होंने क्लब में झाँकना तक पसन्द नहीं किया। क्लब में हिन्दी वालों को आता न देखकर अँग्रेज़ी वाले बड़े दुःखित हुए। हिन्दी के विकास के लिए धन लगाकर तन से लगना सब मिट्टी हो गया। हिन्दी वाले पास तक नहीं फटक रहे! क्या किया जाए- हिन्दी वाले क्लब में भड़भड़ाकर कूद पड़ें?
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हिन्दी वालों को आकर्षित करने के लिए अँग्रेज़ी वालों ने पब में बियर के साथ चियर लड़ाते हुए एक आपातकालीन बैठक की और लगभग तीन घण्टे तक आपस में अँग्रेज़ी में धुँआधार विचार-विमर्श किया। अन्त में सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकाला गया कि रिक्शा या ऑटोरिक्शा में लाउडस्पीकर लादकर गली-गली में 'हिन्दी विकास क्लब' का प्रचार किया जाए। हिन्दी वाले अमूमन लुंगी पहनकर साइकिल पर टहलते हैं। इसलिए अँग्रेज़ी वालों को चाहिए कि हिन्दी वालों जैसा दिखने के लिए कोट-सूट-टाई के स्थान पर लुंगी और बनियान पहनकर हिन्दी विकास का कार्यक्रम चलाएँ और 'हिन्दी विकास क्लब' में आते-जाते समय कार से न आकर साइकिल या रिक्शे से आएँ-जाएँ जिससे हिन्दी वाले 'हिन्दी विकास क्लब' में आने से न घबड़ाएँ। इसके अतिरिक्त 'हिन्दी विकास क्लब' में आने वाले हिन्दी वालों को प्रोत्साहित करने के लिए उद्घाटन के बाद रोज़ाना दो ग़र्म समोसा और एक ग़र्म इमरती के साथ एक ग़र्म कॉफ़ी भी देने की घोषणा की गई।
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