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किस बात पर मैं लिखूँ, किस वज़ह की हो तफ़्सील,
कुछ बेतुका सा, कुछ तुकबंदी, बस हूँ मैं मन वकील,
कभी ख़्वाब रहते प्यासे,कभी भावों की खुले छबील,
लिखने को कभी तरसता, बन के खूब मैं मन वकील,
रेत सी फिसलती जिंदगी, सूखती हुई जोबन की झील,
बालों में आती सफेदी अक्सर पूछे, कौन मन वकील,
मेरी रचना को छापे, निज अपने नाम पर वो जलील,
मैं ढूंढ़ता फिरता यहाँ वहां, हैं कौन वो नया मन वकील,
किस पर करे मन नालिश,किस पर इल्ज़ाम तामील,
बस चुप सा हो गया हूँ, धुँधला सा बना है मन वकील। .
=========== आपका मन वकील
Last edited by man-vakil; 02-10-2015 at 12:57 AM.
मन-वकील ....
आपके स्नेह का आभारी हूँ मित्र
मन-वकील ....
कितने भरे पड़े है यहाँ दुनिया में,
बेबस लाचार,वो बीवीयों के सताए,
आज वो सभी ही दिल्ली पुलिस के
मुख्यालय के बाहर पंक्ति में नज़र आये,
हर एक थामे था हाथ में श्वेत से कागज़,
मुड़े हुए कागज़ शायद अर्ज़ी बन थे आये,
मन वकील भी हिम्मत कर बढ़ा जैसे
आगे उस मानव युक्त पंक्ति की ओर,
कई दुखियारे वेदना से भरे हुए वो
सूखे गले एकाएक मचाने लगे शोर,
फिर भी हिम्मत कर मन वकील
पूछे उनसे, ये लाइन कैसी है भाई,
क्या दिल्ली पोलिस ने बिना एग्जाम
बिना सेहत कोई भर्ती स्कीम लगाई,
एक पति सा लगने वाला दुखियारा
बोला, ऐ चुप रहो अक्लमंद भाई,
जाकर पीछे लाइन में लग जाओ
जो चाहते जीवन में कुछ रंगाई,
हम सब यहाँ सोमनाथ भारती के
पालतू डॉन की चाह में यहाँ आये,
ताकि बीवी के सताने पर हम भी
उसे प्यारे वफादार डॉन से कटवाए
क्योकि आज ये डॉन ही सबको पसंद है
पर बेचारा, मालिक जैसे जेल में बंद है ,,,,
====मन वकील
मन-वकील ....
बहुत वर्षों के पश्चात आज आना हुआ है। लगता है कि अब आप यहाँ सक्रिय नहीं हैं।